सूर्यपुत्र शनिदेव न्यायपूर्वक प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार सुख-दुःख प्रदान करते हैं। इसलिये इन्हें धर्मराज भी कहा जाता है। जन्मकुण्डली में शनि महाराज का सुप्रभाव एवं कुप्रभाव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इनकी दशा के प्रभाव से मनुष्य राजा से रंक और रंक से राजा बन जाता है। शास्त्रानुसार साधारण मनुष्यों के अतिरिक्त देवताओं पर भी समयानुसार इनकी दशाओ का प्रभाव पड़ता है। अकालमृत्यु, दीर्घकालीन रोग, शरीर में दर्द (विशेषतः रीढ़ की हडडी या पैरों में) मुकदमे बाजी, ऊपरी बाधा, वाहन दुर्घटना, धन-यश की हानि, अकारण शत्रुता, सट्टा एवं नशे की आदत, परिवार में कलह, दांतों में तकलीफ, ऋण, शरीर में कम्पन आदि इनकी कुदृष्टि के लक्षण है। प्रस्तुत शनि मृत्युंजयस्तोत्र का विधिपूर्वक नित्य या प्रत्येक शनिवार को पाठ करने से इन सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। शिवमन्दिर, हनुमान मन्दिर, शनिमन्दिर, पीपल या शमी वृक्ष के मूल में, अथवा गृहमन्दिर में यह पाठ कर सकते हैं।
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